हिंदुत्व पर सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की पीठ फिर से करेगी सुनवाई
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हिंदुत्व पर सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की पीठ फिर से करेगी सुनवाई

हिंदुत्व पर अपने फैसले को दोबारा खोलते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी फायदे के लिए धर्म के दुरुपयोग को ‘भ्रष्ट व्यवहार’ के रूप में श्रेणीबद्ध करने वाले चुनाव कानून पर प्रामाणिक फैसले के लिए सात जजों की पीठ द्वारा सुनवाई का फैसला किया है।

नई दिल्ली : हिंदुत्व पर अपने फैसले को दोबारा खोलते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी फायदे के लिए धर्म के दुरुपयोग को ‘भ्रष्ट व्यवहार’ के रूप में श्रेणीबद्ध करने वाले चुनाव कानून पर प्रामाणिक फैसले के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई तेज करने का फैसला किया है।
यह मुद्दा महत्वपूर्ण है क्योंकि शीर्ष अदालत के 1995 के फैसले पर सवाल उठाए गए थे जिसमें कहा गया था कि ‘हिंदुत्व’ के नाम पर वोट मांगना किसी उम्मीदवार को हानिकारक रूप से प्रभावित नहीं करता और तब से उस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तीन चुनाव याचिकाएं लंबित हैं।
शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 1995 में कहा था, ‘उपमहाद्वीप में हिंदुत्व लोगों की जीवन शैली है और ‘यह एक मन:स्थिति है।’ यह फैसला मनोहर जोशी बनाम एनबी पाटिल मामले में सुनाया गया था। यह फैसला न्यायमूर्ति जेएस वर्मा ने लिखा था। उन्होंने जोशी के बयान को धर्म के आधार पर अपील नहीं माना था। जोशी ने कहा था कि महाराष्ट्र में पहले हिंदू राज्य की स्थापना की जाएगी।
यह टिप्पणी जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123 की उपधारा (3) में उल्लिखित ‘भ्रष्ट व्यवहार’ के अभिप्राय के संबंध में सवाल से निपटने के दौरान की थी। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 की उप धारा (3) की व्याख्या का मुद्दा 30 जनवरी (शुक्रवार) को एक बार फिर न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया था। पीठ ने पड़ताल के लिए इसे सात न्यायाधीशों वाली वृहत पीठ के पास भेज दिया। उसका गठन प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम करेंगे। पीठ में न्यायमूर्ति ए के पटनायक, न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एफ आई एम कलीफुल्ला भी शामिल थे। पीठ भाजपा नेता अभिराम सिंह की ओर से 1992 में दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। सिंह के 1990 में महाराष्ट्र विधानसभा में निर्वाचन को बंबई उच्च न्यायालय ने 1991 में निरस्त कर दिया था।
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 16 अप्रैल 1992 को सिंह की अपील को रेफर किया था जिसमें अधिनियम की धारा 123 की उपधारा (3) के उसी सवाल और व्याख्या को पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ के पास उठाया गया था। पांच न्यायाधीशों वाली पीठ इस मामले पर 30 जनवरी को जब सुनवाई कर रही थी तब उसे सूचित किया गया कि यही मुद्दा नारायण सिंह द्वारा भाजपा नेता सुंदर लाल पटवा के खिलाफ दायर चुनाव याचिका में उठाया गया था और शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने इसे सात न्यायाधीशों वाली बड़ी पीठ के पास भेज दिया था।
इसके बाद, न्यायमूर्ति लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सिंह के मामले को प्रधान न्यायाधीश के पास भेज दिया ताकि वह इसे सात न्यायाधीशों वाली पीठ को सौंपें। पीठ ने 30 जनवरी के अपने आदेश में कहा, ‘चूंकि मौजूदा अपील के सवालों में से एक पहले ही सात न्यायाधीशों की वृहत पीठ को सौंपा जा चुका है इसलिए हम 1951 के अधिनियम की धारा 123 की उपधारा (3) की सीमित हद तक व्याख्या के लिए इस अपील को सात न्यायाधीशों की वृहत पीठ को सौंपना उचित मानते हैं।’ आदेश में कहा गया है, ‘रजिस्ट्री सात न्यायाधीशों की पीठ के गठन के लिए मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखेगी। मामले को प्रधान न्यायाधीश के आदेश के मद्देनजर सूचीबद्ध किया जा सकता है।’ (एजेंसी)

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